डॉ भीमराव अम्बेडकर पर कविता
‘ऐसे थे बाबा साहब अबेंडकर’
नाम उनका डॉ भीमराव अंबेडकर,
जीवन भर दूसरों की सहायता के लिए रहे तत्पर।
अनेकों कष्टों को सहकर पाया शिक्षा का अधिकार,
जातिप्रथा और छुआछुत की समस्या पर किया वार।
संविधान बनाकर दिया दबे कुचलों को अधिकार,
ऐसे थे हमारे बाबा साहब अंबेडकर।
मध्य प्रदेश के महू में लिया जन्म,
मानवता को मान लिया अपना कर्म।
रास्ते में आयी तमाम विपत्तियां,
लेकिन हर चुनौती का डटकर किया सामना।
देशहित में किये कई महान कार्य,
लोगो के अधिकारों हेतु किया संविधान निर्माण।
दबे-कुचलों और शोषितों को राह दिखाया,
आजादी और आत्मसम्मान का महत्व बतलाया।
इसलिए तो ऐसे थे हमारे बाबा साहब अंबेडकर,
जिन्होंने किया हर विपत्ति का सामना डटकर।
Dr Babasaheb Ambedkar Kavita
‘हमारे बाबा साहब’
सबके प्यारे डॉ भीमराव अंबेडकर,
लोगों में सबसे दुलारे बाबा साहब अंबेडकर।
14 अप्रैल को आता इनका जन्म दिवस,
लोगों के लिए कार्य किया इन्होंने बर बस।
जीवन था उनका संघर्षों से भरा,
फिर भी अपने हर वादे को किया पूरा।
देशहित में किया संविधान निर्माण,
गरीबों निर्बलों के जीवन में डाले नये प्राण।
उनके दिखाये रास्ते पर हमें चलना होगा,
संविधान की बातों पर अमल करना होगा।
नियम कानून द्वारा सबको दिये नये विचार,
अपने प्रयासों से किया सबके सपनों को साकार।
आओ मिलकर करें उनका सम्मान,
उनके बातों को मानकर रखे उनका मान।
गरीबों के लिए मसीहा बनकर आये बाबा साहब,
शोषित हों या पिछड़े पूरे किये सबके ख्वाब,
यही है कारण की इतने महान थे हमारे बाबा साहब।
Dr Br Ambedkar Kavita In Hindi
“मत काटो प्रतिभाओं को आरक्षण की तलवार से”
उस कविता के जवाब मे ये . . .
किस प्रतिभा की बात करो ,जो जन्म से तुमने पायी है
आरक्षण तलवार नही है ,समानता की लड़ाई है
गर पूना पेक्ट लागू होता तो सचमुच तुम बीमार थे
प्रतिभा नही तुम खुद कटते हो, आरक्षण के वार से
रेल पटरियों पर जो भी बेठे, आज दिखाई देते हैं
आरक्षण को सारे वो,मान मिठाई बेठे हैं
मिलकर तुम षडयंत्र चलाते हो ,संघी सरकार से
प्रतिभा नही तुम खुद कटते हो, आरक्षण के वार से
गृहयुद्ध की धमकी देकर ,भयभीत किसे तुम करते हो
आरक्षण का विरोध करो ,आरक्षण पर ही मरते हो
फिर बयान देने लगते हो बिल्कुल ही बेकार से
प्रतिभा नही तुम खुद कटते हो, आरक्षण के वार से
जातिवाद ही प्रमुख समस्या, आधार ब्राह्मणवाद है
जन्माधारित उंच नींच दलितों का क्या अपराध है
सदियों जिसने काम किया है बिन पैसे बेगार से
Short Poem On Dr Br Ambedkar In Hindi
‘बाबा साहब हमारे भाग्य विधाता’
भारत के संविधान निर्माता,
दलित-शोषितों के भाग्य विधाता।
लोगों को दिया समानता का अधिकार,
बनायी जनता की सरकार।
न्याय और जातिवाद से लिया लोहा,
लोगों के मन को मोहा।
महिलाओं और दलितों को दिये अधिकार,
सबके सपनों को किया साकार।
दलितों के अधिकारों के लिए किया संघर्ष,
हर चुनौती को स्वीकार किया संघर्ष
राष्ट्र निर्माण के लिए किया कार्य,
हर चुनौती को किया स्वीकार।
देशहित के लिए सहे हर अपमान,
इसलिए आओ करें बाबा साहब का सम्मान।
बचपन से साए में जीते जीते
बड़े हुए… फिर भी रहे वही साए उनके पीछे पीछे
नजर न आया क्या करना है
थोड़े समय में खूब पढ़ लिख गये
पढाई पूरी करने विलायत भी गये
वापस आकर भी दिखी उन्हें वही दशा
देश तो आज़ादी मांगे और हम आपस में खफा
हर एक मार्ग देख लिया उन्होंने
बात अहिंसा की करते थे
गौतम बुद्ध के आदर्शो पर चलते थे
नामुमकिन पथ को.. मुमकिन कर डाला
समाज में न थे जो.. उनका समाज बना डाला
हर तरह से वाकिफ थे वो
कोई उनकी नहीं सुनता था… लेकिन सबके लिए अकेले काफी थे वो
मकसद.. एक एक को इन्साफ दिलाना
वकालत में भी हाथ आजमाया
उनके जितना न था किसी के पास ज्ञान
गाँधी नेहरु प्रसाद ने रचवा डाला उनसे संविधान
मानते है आज भी सब उनको बहुत दिमाग वाला
1990 में भारत सरकार ने उन्हें याद कर … भारत रत्न दे डाला
छोटी सी कविता में इतने बड़े इंसान को बयां कैसे करू
जिसने भारत को चलने लायक बनाया उसके बारे में और क्या लिखूं
अब न केवल संविधान बनाया.
इन्होने समानता का भी पाठ पढाया
जब भी जरुरत पड़ी भारत को
तब इंसानों को इंसान बनाया
लिखने को मजबूर हुआ मै…
लिखने को मजबूर हुआ मै तो बाबा साहब की नाखुश आवाज पर
मै समाज की तारीफ में कोई गुणगान नहीं करूंगा
समाज के दुश्मनों का मरते दम सम्मान नहीं करूंगा
शर्मिंदगी है मुझको और होगी तुमको भी उन बातो की
जो अब तक परिभाषा भी न समझ पाये बाबा के संवादों की।
क्या लिखूँ मै अपनी इस पिछड़ती हुई कौम पर
है पिघलने को जो तत्पर जा बैठी है उस मोम पर
वैसे तो हो आजाद देश में ,पर तुम्हारा कोई वजूद नहीं
सोये हो सब के सब पर मान पाने कि सूद नहीं
आज़ादी के वर्षो बाद भी सम्मान पाने कि सूद नहीं।
क्या इसी लिए बाबा साहब ने आज़ादी का मतलब समझाया था
क्या इसी लिए उन्होने तुमको गुलामी से लड़ना सिखलाया था
क्या इसी लिए बाबा साहब ने तुमको ताकत दिलवाई थी
क्या इसी लिए बाबा ने तुमसे कसमें खिलवाई थी
अरे बाबा साहब के परम सपने को ऎसे ना नकेरो तुम
और उनकी बनाई कौम को इस तरह ना बिखेरो तुम
बाबा साहब की जीवन कहानी तुम भूल गये
उनकी संघर्षमय वो ज़वानी तुम भूल गये
तोड़ दी सारी कसमें और वादे भी तुम भूल गये
और बाबा की दी वो सारी सौगाते तुम भूल गये
तुम स्वार्थी ज़रूर हो पर अन्य कुछ और नहीं
तुम्हारा वज़ूद क्या है करते तुम कभी गौर नहीं
अधिकारी, नेता का ताज़ तुम्हारे सर पे नहीं
पूर्ण आज़ादी का स्वरूप साज तुम्हारे घर में नहीं
अरे याद करो था वो इक सिंह जिसने सारे विश्व को हिला डाला था
और तुम्हारे लिए ही मनुवादियों को अपने कदमों में झुका डाला था
गैर मनुवादियो को तुमने अपना सम्राट बनाया है
अपना आया आगे कोई तो तुमने उसको ठुकराया है
जाति-जाति में भेद कर भाईचारा भी तुमने मिटा दिया
और बाबा के सपनों तुमने कुम्भकर्ण की नींद सुला दिया॥
बाबा साहब का दर्द…
लिखने की इच्छा न थी स्वार्थी कायर इस समाज पर
लिखने को मजबूर हुआ मै तो बाबा साहब की नाखुश आवाज पर
मै समाज की तारीफ में कोई गुणगान नहीं करूंगा
समाज के दुश्मनों का मरते दम सम्मान नहीं करूंगा
शर्मिंदगी है मुझको और होगी तुमको भी उन बातो की
जो अब तक परिभाषा भी न समझ पाये बाबा के संवादों की।
क्या लिखूँ मै अपनी इस पिछड़ती हुई कौम पर
है पिघलने को जो तत्पर जा बैठी है उस मोम पर
वैसे तो हो आजाद देश में ,पर तुम्हारा कोई वजूद नहीं
सोये हो सब के सब पर मान पाने कि सूद नहीं
आज़ादी के वर्षो बाद भी सम्मान पाने कि सूद नहीं।
क्या इसी लिए बाबा साहब ने आज़ादी का मतलब समझाया था
क्या इसी लिए उन्होने तुमको गुलामी से लड़ना सिखलाया था
क्या इसी लिए बाबा साहब ने तुमको ताकत दिलवाई थी
क्या इसी लिए बाबा ने तुमसे कसमें खिलवाई थी
अरे बाबा साहब के परम सपने को ऎसे ना नकेरो तुम
और उनकी बनाई कौम को इस तरह ना बिखेरो तुम
बाबा साहब की जीवन कहानी तुम भूल गये
उनकी संघर्षमय वो ज़वानी तुम भूल गये
तोड़ दी सारी कसमें और वादे भी तुम भूल गये
और बाबा की दी वो सारी सौगाते तुम भूल गये
तुम स्वार्थी ज़रूर हो पर अन्य कुछ और नहीं
तुम्हारा वज़ूद क्या है करते तुम कभी गौर नहीं
अधिकारी, नेता का ताज़ तुम्हारे सर पे नहीं
पूर्ण आज़ादी का स्वरूप साज तुम्हारे घर में नहीं
अरे याद करो था वो इक सिंह जिसने सारे विश्व को हिला डाला था
और तुम्हारे लिए ही मनुवादियों को अपने कदमों में झुका डाला था
गैर मनुवादियो को तुमने अपना सम्राट बनाया है
अपना आया आगे कोई तो तुमने उसको ठुकराया है
जाति-जाति में भेद कर भाईचारा भी तुमने मिटा दिया
और बाबा के सपनों तुमने कुम्भकर्ण की नींद सुला दिया॥
आज जिनके जन्मदिन पर , गीत हैं हम गा रहे |
आज जिनके जन्मदिन पर , गीत हैं हम गा रहे |
जीवन में कुछ करने की , सीख हैं हम पा रहे |
प्रेरणा लेकर के जिनसे , प्रगति पथ पर जा रहे |
स्वर्ग से भी नित्य हम पर, आशीष बरसा रहे |
सूने भारत में गया, संगीत सा जो छेड़कर |
वो युगनियंता युगपुरुष वो भीमराव आम्बेडकर |
आंबेडकर आंबेडकर आंबेडकर आंबेडकर ||
श्रद्धा सुमन करते हें अर्पित , जिनके हम सम्मान में |
जिनके बिचारों से हुई , बृद्धि हमारे ज्ञान में |
दुनिया की अच्छाईयां , डाली हैं संविधान में |
दैदीप्य सूरज की तरह , होता है सकल जहान में |
कुशल चितेरा समय का , गया है चित्र उकेरकर |
वो युगनियंता युगपुरुष , वो भीमराव आम्बेडकर |
आंबेडकर आंबेडकर आंबेडकर आंबेडकर ||
विकट समस्या थी समाज में , गाँव गाँव जन जन में |
सह सकते थे कैसे बाबा , लगी थी उनके तन मन में |
खुशहाली लाना चाही थी , भारत माँ तृण तृण में |
नयी जान फूंकी थी जिसने , इस माटी के कण कण में |
जीवन जिया जिन्होंने सारा ,जग में खुशियां बिखेरकर |
वो युगनियंता युगपुरुष , वो भीमराव अम्बेडकर |
आंबेडकर आंबेडकर आंबेडकर आंबेडकर ||
– गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’
भीमराव अंबेडकर बाबा,
शत-शत तुम्हें प्रणाम,
भारत की पावन गाथा,
में अमर तुम्हारा नाम।
माता श्रीमती भीमाबाई,
पिता राम मालो सकपाल,
चौदह अप्रैल को आया था,
उनके घर धरती का लाल
महू छावनी में जन्म स्थल,
अम्बाबाड़े ग्राम।
अंग्रेजों की दासता से,
भारत को मुक्ति दिलाई,
छुआछूत प्रति मुखरित वाणी,
जागरूकता लाई।
जाति-पांति से किया बराबर,
जीवनभर संग्राम।
तुम इतिहास पुरुष,
भारत के संविधान निर्माता,
गणतांत्रिक व्यवस्था पोषित,
जन-जन भाग्य विधाता।
सभी बराबर हैं समाज में,
प्रिय संदेश ललाम।
संवारा है विधि ने वह छण इस तरह से,
संवारा है विधि ने वह छण इस तरह से,
दिया जब जगत को है उपहार ऐसा ।
सुहाना महीना बसंती पवन थी,
लिए जन्म ‘बाबा’ हुआ हर्ष ऐसा ।
पिता राम जी करते सेना में सेवा,
मदिरा मांस जिसने कभी नहीं लेवा,
माता जी भीमाबाई धर्म की विभूति थी,
विनय-सद्भावना की साक्षात मूर्ति थीं,
उनके प्रताप का प्रकाश प्राप्त कर के,
हुआ सुत विलक्षण कोई जग न ऐसा ।।
शिक्षा संगठन के थे वे पुजारी,
अधिकार हेतु किए संघर्ष भारी,
मानव मेँ रक्त एक, एक भाँति आये,
स्वारथ बस होके जाति पाति हैं बनायें,
युगो की यह पीड़ा रमी थी जो रग-रग,
गहे अस्त्र जब वे गया दर्द ऐसा ।।
देश के विधान हेतु संविधान उनका,
हित है निहित जिसमें रहा जन-जन का.
एकता अखंडता स्वदेश प्रेम भाये,
धर्म वे स्वदेशी सदा अपनाये,
छुवा-छूत मंतर छू करके भगाये
सहे दीन दुखियों के हित क्लेश ऐसा ।।
दिये उपदेश उसे सदा अपनायें,
किसी के समक्ष कर नहीं फैलायें,
मार्ग शांति का पुनीत कभी नहीं भूलें,
श्रम अरु उमंग भाव गहि गगन छू लें,
सदा दीप होगा ज्वलित जग में जगमग,
लगें सब सगे ‘राज’ सबके सब ऐसा ।।
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