भीम राव आम्बेडकर जी की शरुआती शिक्षा :
आम्बेडकर जी ने 7 नवंबर 1900 को सातारा शहर में राजवाड़ा चौक पर बने हुए गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल में अंग्रेजी की पहली क्लास में दाखिला लिया। इस स्कूल को अब प्रतापसिंह हाईस्कूल के नाम से जाना जाता है। यहीं से आम्बेडकर जी की शिक्षा शुरू हुई थी। इसी दिन को ध्यान में रखते हुए यानी कि 7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस मनाया जाता है। स्कूल में इनका नाम “भिवा रामजी आंबेडकर” लिखवाया गया। जब यह अंग्रेजी की चौथी कक्षा में उत्तीर्ण हुए तो सभी को बहुत खुशी हुई और एक सार्वजनिक समारोह में इनको सम्मानित किया गया क्योंकि आम्बेडकर जी एक अछूत समझे जाने वाली जाति से संबंध रखते थे। बाबा साहेब की इस उपलब्धि से खुश होकर उनके दादा केलुस्कर जी ने उनको खुद के द्वारा लिखी हुई ‘बुद्ध की जीवनी’ पुरस्कार के रूप में दी।
सन 1907 में भीमराव ने दसवीं कक्षा पास की और उससे अगले साल उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में एडमिशन लिया जोकि बॉम्बे विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ था। अपनी जाति में इतने ऊंचे शिखर पर पढ़ाई करने वाले यह पहले इंसान थे।
सन 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से इन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान से B.A. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद ये बड़ौदा राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करने लगे।
बी आर आंबेडकर की कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा
1913 में इनको सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा शुरू की गयी एक योजना के तहत स्नातकोत्तर शिक्षा लेने के लिए इनको 3 साल तक 11.50 डॉलर प्रति महिना बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति दी गयी थी। इस योजना के जरिये बाबा साहेब 22 साल की उम्र में संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यू यॉर्क शहर स्थित कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा लेने के लिए चले गये। यहाँ पे इनकी दोस्ती पारसी मित्र नवल भातेना के साथ हो गयी। सन 1915 में इन्होने मुख्य विषय अर्थशास्त्र के साथ कला स्नातकोत्तर यानि M.A की परीक्षा उत्तीर्ण की जिसमे अन्य सब्जेक्ट्स समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान थे। बाबा साहेब ने प्राचीन भारतीय वाणिज्य (एशियंट इंडियन्स कॉमर्स ) विषय पर अपना शोध कार्य भी प्रस्तुत किया।
सन 1916 में इन्होने नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया – ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी के लिए अपना दूसरा शोध कार्य किया और ये लन्दन चले गये।
1916 में ही बाबा साहेब ने अपना तीसरा शोध “इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया” पर किया। अपना शोध कार्य सही तरीके से प्रकाशित करने से इनको सन 1927 में पीएचडी से नवाजा गया। भीम राव आम्बेडकर जी का पहला प्रकाशित पत्र “भारत में जातियां: उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास” नामक एक शोध पत्र था।
Dr Br Ambedkar Education Qualification in Hindi
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भीम राव की में स्नातकोत्तर की शिक्षा
भीम राव जी सन 1916 में लंदन चले गये। यहाँ पे इन्होने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स में एडमिशन लिया।इसके साथ ही इन्होने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में दाखिला ले लिया। यहाँ पे ये अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर काम करने लग गये। जून 1917 में इनकी बड़ौदा राज्य द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति समाप्त हो गई इसलिए इनको अपनी पढ़ाई अस्थायी रूप से बीच में ही छोड़ के वापिश अपने घर भारत आना पड़ा।
इनको अपने थीसिस को पूरा करने के लिए 4 साल का टाइम दिया गया था। भारत आकर इन्होंने दोबारा से बड़ौदा राज्य में सेना सचिव के रूप में काम करना शुरू कर दिया। इनके जिंदगी में फिर से भेदभाव आने लगा जिससे ये काफी निराश हो गए और इसी वजह से उन्होंने अपनी यह नौकरी छोड़ दी। इसके बाद ये एक लेखक और निजी ट्यूटर के रूप में काम करने लगे। कुछ समय बाद बाबा साहेब को मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी दे दी गई।
सन 1920 में अपने पारसी मित्र और कोहलापुर के साहू महाराज की सहायता से व अपनी कुछ निजी बचत से बाबासाहेब फिर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड वापस चले गए। 1921 में इन्होंने एमएससी की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान इन्होंने “ब्रिटिश भारत में शाही अर्थ व्यवस्था का प्रांतीय विकेंद्रीकरण” यानी प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईज़ेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया’ खोज ग्रन्थ प्रजेंट किया। 1922 में इनको ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री दी गई और इसी दौरान इनको ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश की अनुमति मिली। 1923 में इन्होंने अपनी अर्थशास्त्र में डी॰एससी॰ (डॉक्टर ऑफ साईंस) की डिग्री पूरी की। अबकी बार इनकी थीसिस “रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान” यानि “दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन”पर थी।
लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भीमराव आम्बेडकर 3 महीनों तक जर्मनी में रुके। यहां पर इन्होंने बॉन विश्वविद्यालय में अपनी अर्थशास्त्र की पढाई जारी रखी। लेकिन समय का अभाव होने की वजह से ज्यादा समय तक ये विश्वविद्यालय में नहीं रुक सके।
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