भीम राव आम्बेडकर जी का जन्म – डॉ बी आर आम्बेडकर जी का बचपन :
Dr Bhim Rao Ambedkar Biography In Hindi
बाबा साहेब डॉ भीम राव आम्बेडकर का जन्म ब्रिटिश भारत के समय दिनांक 14 अप्रैल 1891 को मध्य भारत प्रान्त यानी की आज की तारीख के हिसाब से मध्य प्रदेश के महू नगर सैन्य छावनी में हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था और माता का नाम भीमा बाई था। ये अपने माँ बाप की सबसे आखिरी 14वीं संतान थे। इनका परिवार उस समय अछूत समझने जाने वाली हिन्दू जाति महार से संबंधित थे। लोग इनसे काफी भेदभाव किया करते थे और इनको उस समय काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।
उस समय आम्बेडकर जी का परिवार कबीर पंथ को मानता था और इनका परिवार मराठी मूल का रहने वाला था जोकि महाराष्ट्र रत्नागिरी जिले में आंबडवे गाव से संबंधित है। भीमराव आम्बेडकर के पिता रामजी सकपाल, भारतीय सेना की महू छावनी में काम करते थे और यहा पर नौकरी करते करते वो सूबेदार के पद पर पहुच गये थे।
बचपन में भीम राव जी पढाई में काफी होशियार थे लेकिन अपनी जाति के कारण बाबा साहेब को स्कूल में काफी यातनाओ का सामना करना पड़ा। इनके पिता जी ने सन 1898 में जिजाबाई से दूसरी शादी कर ली।
कैसे रखा गया आंबेडकर नाम ?
इनके पिता जी ने सातारा की गवर्न्मेण्ट हाइस्कूल में भीमराव का नाम भिवा रामजी अंबावडेकर लिखवाया। आंबेडकर जी के बचपन का नाम भिवा था। भीम जी के पिता जी ने उपनाम सकपाल लिखवाने की बजाये आंबडवेकर लिखवाया था, क्युकी आंबडवे नाम उनके गांव से संबंधित था। स्कूल के एक अध्यापक श्री कृष्णा महादेव भीम राव जी से काफी स्नेह रखते थे। इन्होने ही बाबा साहेब के नाम से ‘आंबडवेकर’ हटाकर बिल्कुल आसन नाम ‘आंबेडकर’ जोड़ दिया। इसीलिए बाबा साहेब भीम राव को ‘आंबेडकर’ के नाम से जाना जाता है।
जब ‘आंबेडकर’ जी 15 साल के हुए तो अप्रैल 1906 में इनकी शादी नौ वर्ष की लड़की रमाबाई से कर दी गयी क्युकी उस समय बाल विवाह कर दिया जाता था। तब भीम जी 5वीं कक्षा में पढ़ते थे।
भीम राव आम्बेडकर जी की शरुआती शिक्षा : Br Ambedkar Education
आम्बेडकर जी ने 7 नवंबर 1900 को सातारा शहर में राजवाड़ा चौक पर बने हुए गवर्न्मेण्ट हाईस्कूल में अंग्रेजी की पहली क्लास में दाखिला लिया। इस स्कूल को अब प्रतापसिंह हाईस्कूल के नाम से जाना जाता है। यहीं से आम्बेडकर जी की शिक्षा शुरू हुई थी। इसी दिन को ध्यान में रखते हुए यानी कि 7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस मनाया जाता है। स्कूल में इनका नाम “भिवा रामजी आंबेडकर” लिखवाया गया। जब यह अंग्रेजी की चौथी कक्षा में उत्तीर्ण हुए तो सभी को बहुत खुशी हुई और एक सार्वजनिक समारोह में इनको सम्मानित किया गया क्योंकि आम्बेडकर जी एक अछूत समझे जाने वाली जाति से संबंध रखते थे। बाबा साहेब की इस उपलब्धि से खुश होकर उनके दादा केलुस्कर जी ने उनको खुद के द्वारा लिखी हुई ‘बुद्ध की जीवनी’ पुरस्कार के रूप में दी।
सन 1907 में भीमराव ने दसवीं कक्षा पास की और उससे अगले साल उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में एडमिशन लिया जोकि बॉम्बे विश्वविद्यालय से जुड़ा हुआ था। अपनी जाति में इतने ऊंचे शिखर पर पढ़ाई करने वाले यह पहले इंसान थे।
सन 1912 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से इन्होंने अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान से B.A. की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद ये बड़ौदा राज्य सरकार के साथ मिलकर काम करने लगे।
बी आर आंबेडकर की कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की शिक्षा
सन 1916 में इन्होने नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया – ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी के लिए अपना दूसरा शोध कार्य किया और ये लन्दन चले गये।
1916 में ही बाबा साहेब ने अपना तीसरा शोध “इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया” पर किया। अपना शोध कार्य सही तरीके से प्रकाशित करने से इनको सन 1927 में पीएचडी से नवाजा गया। भीम राव आम्बेडकर जी का पहला प्रकाशित पत्र “भारत में जातियां: उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास” नामक एक शोध पत्र था।
लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से भीम राव की में स्नातकोत्तर की शिक्षा
भीम राव जी सन 1916 में लंदन चले गये। यहाँ पे इन्होने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स में एडमिशन लिया।इसके साथ ही इन्होने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में दाखिला ले लिया। यहाँ पे ये अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर काम करने लग गये। जून 1917 में इनकी बड़ौदा राज्य द्वारा दी जाने वाली छात्रवृत्ति समाप्त हो गई इसलिए इनको अपनी पढ़ाई अस्थायी रूप से बीच में ही छोड़ के वापिश अपने घर भारत आना पड़ा।
इनको अपने थीसिस को पूरा करने के लिए 4 साल का टाइम दिया गया था। भारत आकर इन्होंने दोबारा से बड़ौदा राज्य में सेना सचिव के रूप में काम करना शुरू कर दिया। इनके जिंदगी में फिर से भेदभाव आने लगा जिससे ये काफी निराश हो गए और इसी वजह से उन्होंने अपनी यह नौकरी छोड़ दी। इसके बाद ये एक लेखक और निजी ट्यूटर के रूप में काम करने लगे। कुछ समय बाद बाबा साहेब को मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी दे दी गई।
सन 1920 में अपने पारसी मित्र और कोहलापुर के साहू महाराज की सहायता से व अपनी कुछ निजी बचत से बाबासाहेब फिर से अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड वापस चले गए। 1921 में इन्होंने एमएससी की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान इन्होंने “ब्रिटिश भारत में शाही अर्थ व्यवस्था का प्रांतीय विकेंद्रीकरण” यानी प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईज़ेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया’ खोज ग्रन्थ प्रजेंट किया। 1922 में इनको ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री दी गई और इसी दौरान इनको ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश की अनुमति मिली। 1923 में इन्होंने अपनी अर्थशास्त्र में डी॰एससी॰ (डॉक्टर ऑफ साईंस) की डिग्री पूरी की। अबकी बार इनकी थीसिस “रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान” यानि “दी प्राब्लम आफ दि रुपी: इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन”पर थी।
लंदन से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भीमराव आम्बेडकर 3 महीनों तक जर्मनी में रुके। यहां पर इन्होंने बॉन विश्वविद्यालय में अपनी अर्थशास्त्र की पढाई जारी रखी। लेकिन समय का अभाव होने की वजह से ज्यादा समय तक ये विश्वविद्यालय में नहीं रुक सके।
जातिगत भेदभाव और छूआछूत के लिए बाबा साहेब का संघर्ष ( Dr Ambedkar History In Hindi )
आम्बेडकर जी ने बड़ौदा के रियासत राज्य कि सहायता से शिक्षा ग्रहण की थी इसलिए बाबा साहेब को उनकी सेवा करना जरूरी था। इसके लिए उनको महाराज गायकवाड का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया। यहां पर उनसे उनकी जाति के कारण भेदभाव किया जाने लगा इससे परेशान होकर इन्होंने नौकरी छोड़ दी। अपने बढ़ते हुए परिवार की इस चिंता को देखते हुए इन्होंने एक बार फिर से अपनी जीविका चलाने के लिए कुछ काम करने का प्रयास किया, इसके लिए बाबासाहेब ने एक लेखक के रूप में और निजी शिक्षक के रूप में काम करना शुरू किया साथ ही साथ एक निवेश परामर्श व्यवसाय की भी शुरुआत की। लेकिन इनके सभी ग्राहकों ने इनके साथ भेदभाव करना शुरू कर दिया। 1918 में ये सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स, मुंबई में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए। यहां पर इनके विद्यार्थियों ने इनके साथ अच्छा व्यवहार किया लेकिन अन्य प्रोफेसरों ने इनके साथ पानी पीने से इंकार कर दिया और इनके लिए अलग से पानी की व्यवस्था करने को कहा। ये सभी देखकर बाबा साहेब को बहुत ज्यादा दुख हुआ।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर जी को भारत के एक प्रमुख विद्वान के रूप में “भारत सरकार अधिनियम 1919” के लिए तैयारी कर रही साउथबरो समिति के समक्ष साक्ष्य देने के लिये बुलाया गया। यहां सनवाई के समय बाबासाहेब ने दलित और दूसरे धार्मिक समुदायों के लिए अलग से निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की।
मुंबई से सन 1920 में भीमराव आम्बेडकर ने अपने सप्ताहिक प्रकाशन मूकनायक की शुरुआत की। पाठकों के बीच यह प्रकाशन बहुत ही जल्द लोकप्रिय हो गया। उस समय भीमराव ने इसका उपयोग रूढ़ीवादी हिंदू राजाओं वे जातीय भेदभाव से लड़ने के लिए तथा भारतीय राजनीतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिए किया। बाबासाहेब ने दलित वर्ग के लोगों के लिए एक सम्मेलन में भाषण दिया, इस दौरान साहू चतुर्थ जो कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक थे बहुत प्रभावित हुए। शासक शाहू चतुर्थ जी ने इनके साथ भोजन किया जिसे देखकर रूढ़िवादी समाज में बहुत कोहराम मच गया।
बोम्बे हाई कोर्ट में कानून का अभ्यास करते हुए इन्होंने दलितों की शिक्षा को बढ़ाने तथा उनको ऊपर उठाने के प्रयास किये। केंद्रीय संस्थान बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना करना इनका पहला संगठित प्रयास था। इस सभा का उद्देश्य सामाजिक आर्थिक सुधार व शिक्षा को बढ़ावा देना था। अछूतों व दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए बाबासाहेब ने बहिष्कृत भारत, समता,मूकनायक,प्रबुद्ध भारत और जनता जैसी पांच पत्रिकाएं प्रकाशित की।
बम्बई प्रेसीडेंसी समिति में सन 1925 को यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन कमीशन में काम करने के लिए इनको शामिल किया गया। इस आयोग का पूरे भारत में काफी विरोध हुआ। इस आयोग की रिपोर्ट को भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया।
1 जनवरी 1818 को कोरेगांव की लड़ाई के दौरान मारे गए महार सैनिकों के सम्मान के लिए आम्बेडकर जी ने 1 जनवरी 1927 को एक समारोह का आयोजन किया गया। इस आयोजन में महार समुदाय के सैनिकों के नाम एक शिलालेख बनवाया जो कोरेगांव को दलित स्वाभिमान का सूचक बनाया गया।
बाबासाहेब ने दलितों के के प्रति हो रहे भेदभाव के खिलाफ सन 1927 में एक बड़ा एवं सक्रिय आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया। इस आंदोलन के जरिए डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने पीने के सार्वजनिक संसाधनों को समाज के सभी समुदायों के लिए खुलवाने का प्रयास किया। दलितों को हिंदू मंदिरों में प्रवेश करवाने के लिए काफी संघर्ष किया। इन्होंने एक सत्याग्रह चलाया जिसमें दलित समुदायों को महाड शहर की चवदार तालाब से पानी लेने का अधिक का दिलाने का संघर्ष किया।
भीमराव आम्बेडकर ने 1927 में जातीय भेदभाव का समर्थन करने वाले प्राचीन हिंदू पाठ मनुस्मृति का सार्वजनिक रूप से बहिष्कार किया। इन्होंने इस दौरान दलितों से भेदभाव करने वाले प्राचीन पाठों की प्रतियां जलाई। 25 दिसंबर 1927 को भीमराव आम्बेडकर ने हजारों लोगों के साथ मिलकर मनुस्मृति की प्रतियों को आग के हवाले किया। इसी की याद में हर साल 25 दिसंबर को हिंदू दलितों द्वारा मनुस्मृति दहन दिवस मनाया जाता है।
कालाराम मंदिर सत्याग्रह की शुरुआत भीमराव आम्बेडकर ने 1930 में की। इस दौरान आंदोलन में 15000 लोग इकट्ठा हुए। तब दलित पुरुष महिलाएं पहली बार भगवान को देखने के लिए कालाराम मंदिर में गए थे। जब यह सभी लोग कालाराम मंदिर पहुंचे तो ब्राह्मण अधिकारियों ने मंदिर के द्वार इन लोगों के लिए बंद कर दिए।
पूना पैक्ट और गोलमेज सम्मेलन ( बाबा साहेब की जीवनी )
अब तक डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर भारत की अछूत राजनीतिक हस्ती के बड़े चेहरे बन चुके थे। इस दौरान भीमराव ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और महात्मा गांधी जी की भी आलोचना की थी। इन दोनों पर भीमराव का आरोप था कि गाँधी दलितों को केवल एक करुणा की वस्तु के रूप में मानते हैं। 8 अगस्त 1930 को लंदन में एक दलित वर्ग के सम्मेलन यानी की प्रथम गोलमेज सम्मेलन के दौरान भीमराव ने अपने राजनीतिक विचारों को दुनिया के सामने रखा। इनके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा कांग्रेस और सरकार दोनों से मुक्त होने में है।
“हमें अपना रास्ता स्वयँ बनाना होगा और स्वयँ…. राजनीतिक शक्ति शोषितो की समस्याओं का निवारण नहीं हो सकती, उनका उद्धार समाज मे उनका उचित स्थान पाने में निहित है। उनको अपना रहने का बुरा तरीका बदलना होगा… उनको शिक्षित होना चाहिए…..एक बड़ी आवश्यकता उनकी हीनता की भावना को झकझोरने और उनके अंदर उस दैवीय असंतोष की स्थापना करने की है जो सभी उँचाइयों का स्रोत है।”
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने गांधी और कांग्रेस द्वारा चलाए गए नमक सत्याग्रह की आलोचना की थी। इनको 1931 में लंदन में दूसरे गोलमेज सम्मेलन के लिए भी आमंत्रित किया गया। इस सम्मेलन में दलितों को अलग निर्वाचिका देने की मुद्दे पर गांधी जी से काफी बहस हुई लेकिन ब्रिटिश डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर के विचारों से सहमत थे। गांधीजी का मानना था कि अगर दलितों को अलग से निर्वाचिका दे दी गई तो हिंदू समाज का बंटवारा हो जाएगा। गांधीजी मानते थे कि सवर्णों को दलितों से भेदभाव भुलाने के लिए उनके अंदर हृदय परिवर्तन की जरूरत है और इसके लिए कुछ वर्षों का समय दिया जाना चाहिए। लेकिन गांधी की यह बात बिल्कुल गलत साबित हुई जब सवर्णों हिंदुओं द्वारा पूना संधि के कई दशकों बाद भी दलितों से भेदभाव होता रहा।
1932 में आम्बेडकर के विचारों से सहमत होकर ब्रिटिशो ने दलित व अछूतों को अलग से निर्वाचित का देने की घोषणा की। गोलमेज सम्मेलन में हुए विचारों से ही कम्युनल अवार्ड की घोषणा हुई।
बाबा साहेब द्वारा उठाई गई राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग को इस समझौते के तहत मान लिया गया। इसमें अलग निर्वाचिका देते हुए दलित वर्ग के लोगों को 2 वोट देने का अधिकार दिया गया। इसके अंदर दलित एक वोट अपना प्रतिनिधि सुनने के लिए प्रयोग कर सकते थे तथा दूसरे वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुन सकते थे। ऐसे में दलित प्रतिनिधि केवल दलितों के वोट से ही चुना जाता था। इस समझौते से अब सामान्य वर्ग का कोई भी आदमी दलित प्रतिनिधि नहीं चुन सकता था लेकिन दलित व्यक्ति अपने दूसरे वोट का इस्तेमाल सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि को चुनने में प्रयोग कर सकता था। अब दलित लोगों द्वारा चुना गया दलित प्रतिनिधि दलित लोगों की समस्याओं को सरकार के सामने अच्छे से रख सकता था।
उस समय गांधीजी पुणे की येरवडा जेल में थे। सबसे पहले गांधी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कम्युनल अवॉर्ड को बदलने के लिए कहा। लेकिन जब गांधी जी के इस पत्र का कोई असर नहीं हुआ तो उन्होंने मरण व्रत रखने का निश्चय कर लिया। उसी समय डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने कहा की “यदि गांधी देश की स्वतंत्रता के लिए यह व्रत रखता तो अच्छा होता, लेकिन उन्होंने दलित लोगों के विरोध में यह व्रत रखा है, जो बेहद अफसोसजनक है। जबकि भारतीय ईसाइयो, मुसलमानों और सिखों को मिले इसी (पृथक निर्वाचन के) अधिकार को लेकर गांधी की ओर से कोई आपत्ति नहीं आई।”
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि गांधी कोई अमर व्यक्ति नहीं है भारत में न जाने कितने लोग जन्म लेते हैं और मर जाते हैं। मैं केवल गांधी की जान बचाने के लिए दलितों के हितों को नहीं छोड़ सकता। इस मरण व्रत के कारण गांधी की सेहत लगातार खराब हो रही थी। गांधी के जीवन पर काफी संकट आ गया था इस वजह से पूरा हिंदू समाज भीमराव आम्बेडकर का विरोध करने लग गया।
हिंदुओं के बढ़ते हुए दबाव को देखते हुए भीमराव आम्बेडकर 24 सितम्बर 1932 येरवडा जेल चले गए। जेल में आम्बेडकर और गांधी के बीच एक समझौता हुआ जिसे बाद में पूना पैक्ट का नाम दिया गया। इस समझौते के तहत भीमराव ने दलितों को कम्युनल अवॉर्ड में मिले अलग निर्वाचन के अधिकार को छोड़ने की बात कही। इसके अलावा भीमराव ने कम्युनल अवॉर्ड में मिली 78 सीटों को बढ़ाकर 148 करवा ली। इसके साथ ही दलित समुदाय के लिए प्रत्येक प्रांत में शिक्षा के लिए मिलने वाली राशि को नियमित करवाया और सरकारी नौकरियों में दलित वर्ग के लोगों की भर्ती बिना भेदभाव के सुनिश्चित करवाई। ऐसा करने से महात्मा गांधी ने अपना मरण व्रत तोड़ दिया और उनकी जान बच गई। इस समझौते से भीमराव आम्बेडकर खुश नहीं थे इन्होने गांधी जी के अनशन को दलितों को उनके अधिकारों से वंचित रखने के लिए एक नाटक करार दिया। इन्होंने ‘स्टेट ऑफ मायनॉरिटी’ नामक ग्रंथ में पूना पैक्ट के प्रति नाराजगी व्यक्त की।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर का व्यक्तिगत जीवन : ( बाबा साहेब की कहानी )
बाबा साहेब के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था और माता का नाम भीमा बाई था। इनके दादा का नाम मालू जी सकपाल था। इनके बचपन में ही इनकी माता भीमा बाई का देहांत हो गया था इसलिए इनकी बुआ मीराबाई ने इनको संभाला। मीराबाई इनके पिता की बड़ी बहन थी। अपनी बहन के कहने पर इनके पिताजी ने जीजाबाई से दोबारा विवाह कर लिया ताकि बच्चे भीमराव का लालन-पालन अच्छे से हो सके। पांचवी कक्षा में पढ़ने के दौरान भीमराव आम्बेडकर की शादी रमाबाई से हो गई थी।
इन दोनों के 5 बच्चे भी जिनमें चार पुत्र : गंगाधर, राजरत्न,यशवंत, रमेश, और एक बेटी इंदु थी। लेकिन बेटे यशवंत को छोड़कर सभी बच्चों की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी।
भीमराव ने कहा कि उसका जीवन तीन उपास्यों और 3 गुरुओं से बना है। उनके तीन उपास्य यानी कि देवता थे-ज्ञान, स्वाभिमान और शील। और इन्होंने जिन 3 महान व्यक्तियों को अपना गुरु माना उनमें पहला नाम गौतम बुध का, दूसरा नाम संत कबीर का और तीसरा नाम महात्मा ज्योति राव फूले का आता है।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर को 13 अक्टूबर 1935 को सरकारी लॉ कॉलेज का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए उन्होंने 2 साल तक काम किया। रामजस कॉलेज के संस्थापक श्री राय केदारनाथ का देहांत होने के बाद इस कॉलेज में गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने काम किया। भीमराव मुंबई में रहने लग गए इन्होंने मुंबई में तीन मंजिला घर राजगृह बनवाया। इस घर में इनका एक निजी पुस्तकालय था जिसमें 50,000 से ज्यादा पुस्तके थी। उस समय यह दुनिया का सबसे बड़ा निजी पुस्तकालय था।
काफी समय से इनकी पत्नी रमाबाई एक लंबी बीमारी से जूझ रही थी, 27 मई 1935 को इनकी पत्नी की मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु होने से पहले इनकी पत्नी पंढरपुर तीर्थ यात्रा के लिए जाना चाहती थी लेकिन आम्बेडकर ने इनको इजाजत नहीं दी। भीमराव ने कहा कि जिस हिंदू तीर्थ पर हमें अछूत माना जाता हो वहां जाने का कोई औचित्य नहीं बनता, इसकी बजाए भीमराव ने अपनी पत्नी के लिए एक नया पंढरपुर बनाने को कहा था।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर का राजनीतिक जीवन : बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की कथा
स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना भीमराव आम्बेडकर ने 1936 में की जिसने 1937 में केंद्रीय विधानसभा चुनाव में 13 सीटें जीती। 15 मई 1936 को आम्बेडकर ने अपनी पुस्तक ‘एनीहिलेशन ऑफ कास्ट’ (जाति प्रथा का विनाश) का प्रकाशन किया जोकि उनके द्वारा न्यूयॉर्क में लिखे गए एक शोध पत्र पर आधारित थी। इस प्रकाशन में भीमराव ने जाति व्यवस्था और हिंदू धार्मिक नेताओं की काफी आलोचना की हुई थी। इसमें इन्होंने गांधी द्वारा अछूत समुदाय के लोगों को हरिजन पुकारने पर कड़ी निंदा की थी।
सन 1955 में बीबीसी रेडियो पर दिए साक्षात्कार में भीमराव ने गांधी पर गुजराती भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का समर्थन करने पर तथा इंग्लिश भाषा के पत्रों में जाति व्यवस्था का विरोध करने का आरोप लगाया था।
रक्षा सलाहकार समिति और वायसराय की कार्यकारी परिषद के लिए भीमराव आम्बेडकर सन 1942 से 1946 तक श्रम मंत्री के रूप में कार्यरत रहे।
भारत की आजादी में भीमराव आम्बेडकर का काफी अहम योगदान रहा था।
पाकिस्तान की मांग करने वाले मुस्लिम लीग के लाहौर रिज़ोल्यूशन के समय डॉ. बी.आर. आम्बेडकर ने “थॉट्स ऑन पाकिस्तान” नाम से एक किताब लिखी इस पुस्तक में सभी पहलुओं से पाकिस्तान की अवधारणा का वर्णन किया हुआ था। इसमें बाबासाहेब में मुस्लिमों के लिए मुस्लिम लीग द्वारा एक अलग देश पाकिस्तान की मांग करने को गलत ठहराया। उन्होंने सुझाव दिया कि मुस्लिम और गैर मुस्लिम बहुमत वाले हिस्सों को अलग करने के लिए बंगाल और पंजाब की सीमाओं को फिर से तैयार करना चाहिए। विद्वान वेंकट ढलीपाल के अनुसार थॉट्स ऑन पाकिस्तान पुस्तक ने भारतीय राजनीति को एक दशक तक रोके रखा। डॉ. बी.आर. आम्बेडकर मुस्लिम लीग और मोहम्मद अली जिन्नाह की विभाजनकारी रणनीति के सख्त खिलाफ थे। मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि मुसलमान और हिंदुओं को देश बनाना चाहिए अगर ऐसा नहीं किया गया तो देश का नेतृत्व करने के लिए जातिगत राष्ट्रवाद होगा जिसके चलते देश में और अधिक हिंसा बढ़ेगी।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने मोहम्मद अली जिन्ना के इस विचार को गलत ठहराते हुए चेकोस्लोवाकिया और ऑटोमोन साम्राज्य के विघटन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र किया। भीमराव ने पूछा कि क्या पाकिस्तान देश बनाने के लिए पर्याप्त कारण मौजूद है? और इन्होंने सुझाव दिया कि हिंदू और मुसलमानों के बीच मतभेद को एक छोटे से कठोर कदम से मिटाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि कनाडा जैसे देशों में संप्रदायिक मुद्दे हमेशा से चलते आ रहे हैं पर वहां पर अभी भी फ्रांसीसी और अंग्रेज एक साथ रह रहे हैं तो क्या मुस्लिम और हिंदू एक साथ नहीं रह सकते।
डॉ. बी.आर. आम्बेडकर ने पहले ही चेतावनी दी थी की भारत और पाकिस्तान दो देश बनाने का वास्तविक कार्य बहुत दुखदाई और कठिनाई भरा होगा। इतनी विशाल जनसंख्या को अलग अलग करने से बाद में दोनों देशों की सीमा विवाद की समस्या रहेगी। डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर द्वारा की गई यह भविष्यवाणी आज बिल्कुल सत्य साबित हो रही है।
भीमराव ने कांग्रेस और गांधी पर “व्हॉट काँग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स?” (काँग्रेस और गांधी ने अछूतों के लिये क्या किया?) नामक पुस्तक के जरिए ढोंग करने का आरोप लगाया।
1946 में भीमराव आम्बेडकर की पार्टी अखिल भारतीय अनुसूचित जाति फेडरेशन (शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन) ने संविधान सभा के लिए हुए चुनाव में अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। इसके बाद भीमराव बंगाल से संविधान सभा में चुने गए जहां पर मुस्लिम लीग सत्ता में थी।
1952 का पहला भारतीय लोकसभा चुनाव भीमराव ने बॉम्बे उत्तर से लड़ा लेकिन यहां पर कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार नारायण काजोलकर की जीत हुई।
1952 में आम्बेडकर राज्य सभा के सदस्य बन गए। 1954 के उपचुनाव में भीमराव ने दोबारा भंडारा से चुनाव लड़ा लेकिन अबकी बार फिर से वह हार गए और कांग्रेस पार्टी की जीत हुई। इससे अगले दूसरे आम चुनाव 1957 तक डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर की मृत्यु हो गई।
राज्यसभा में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हुए भीमराव आम्बेडकर दो बार भारतीय संसद के ऊपरी सदन में सदस्य बनकर रहे। राज्यसभा सदस्य के रूप में उनका पहला कार्यकाल 3 अप्रैल 1952 से 2 अप्रैल 1956 के बीच था। उनका दूसरा कार्यकाल 3 अप्रैल 1956 से 2 अप्रैल 1962 तक आयोजित होना था लेकिन इससे पहले ही 6 दिसंबर 1956 को 65 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया।
भीमराव ने अपनी पुस्तक हू वर द शुद्राज़? (शुद्र कौन थे?) के जरिए हिंदू जाति व्यवस्था के पदानुक्रम को समझाया तथा शूद्रों के अस्तित्व की व्याख्या भी इन्होंने की। उन्होंने इस बात पर भी काफी जोर दिया कि किस तरह से अतिसुंदर यानी की अछूत, शुद्रों से से अलग है। 1948 में हू वेयर द शुद्राज़? की उत्तरकथा द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी (अछूत: छुआछूत के मूल पर एक शोध) में भीमराव ने हिंदू धर्म काफी आलोचना की।
“हिंदू सभ्यता… जो मानवता को दास बनाने और उसका दमन करने की एक क्रूर युक्ति है और इसका उचित नाम बदनामी होगा। एक सभ्यता के बारे मे और क्या कहा जा सकता है जिसने लोगों के एक बहुत बड़े वर्ग को विकसित किया जिसे… एक मानव से हीन समझा गया और जिसका स्पर्श मात्र प्रदूषण फैलाने का पर्याप्त कारण है?”
भीमराव दक्षिण एशिया के इस्लाम धर्म की नीतियों की भी बड़ी आलोचना करते थे। इन्होंने मुस्लिमों में होने वाले वाले बाल विवाह और महिलाओं के साथ होने वाले गलत व्यवहार की काफी निंदा की।
उन्होंने कहा कि-
“बहुविवाह और रखैल रखने के दुष्परिणाम शब्दों में व्यक्त नहीं किये जा सकते जो विशेष रूप से एक मुस्लिम महिला के दुःख के स्रोत हैं। जाति व्यवस्था को ही लें, हर कोई कहता है कि इस्लाम गुलामी और जाति से मुक्त होना चाहिए, जबकि गुलामी अस्तित्व में है और इसे इस्लाम और इस्लामी देशों से समर्थन मिला है। जबकि कुरान में निहित गुलामों के न्याय और मानवीय उपचार के बारे में पैगंबर द्वारा किए गए नुस्खे प्रशंसनीय हैं, इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो इस अभिशाप के उन्मूलन का समर्थन करता हो। अगर गुलामी खत्म भी हो जाये पर फिर भी मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था रह जायेगी।”
भीमराव ने मुस्लिम समाज में हिंदू समाज से भी कहीं ज्यादा सामाजिक बुराइयां बताई थी और उन्होंने कहा कि मुसलमान इन बुराइयों को भाईचारे जैसे नरक शब्दों का प्रयोग करके इन्हें छुपाते हैं।
उन्होंने कहा कि हालांकि पर्दा प्रथा जैसी गंदी प्रथाएं हिंदुओं में भी है लेकिन उसे धार्मिक रूप से मान्यता केवल मुस्लिम धर्म ने दी है। उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमान अपने समाज का सुधार करने में असफल रहा है इसके विपरीत तुर्की जैसे देशों ने अपने आप में बहुत बदलाव किए हैं।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर द्वारा धर्म परिवर्तन की घोषणा : बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जीवनी
भीमराव ने सवर्ण हिंदुओं का दलितों के प्रति हृदय परिवर्तन करने के लिए 10-12 सालों तक काफी प्रयास किया और हिंदू धर्म तथा हिंदू समाज में समता तथा सम्मान लाने के लिए बहुत संघर्ष किया परन्तु सवर्ण हिन्दुओं का ह्रदय परिवर्तन नही हुआ। इसके विपरीत इनकी बहुत निंदा की गई और इनको हिंदू धर्म का विनाश करने वाला कहा गया। इन सबके बाद उन्होंने कहा कि “हमने हिन्दू समाज में समानता का स्तर प्राप्त करने के लिए हर तरह के प्रयत्न और सत्याग्रह किए, परन्तु सब निरर्थक सिद्ध हुए। हिन्दू समाज में समानता के लिए कोई स्थान नहीं है।” हिंदू समाज का कहना था कि “मनुष्य धर्म के लिए हैं” इसके विपरीत आम्बेडकर का मानना था कि “धर्म मनुष्य के लिए हैं।”
भीमराव ने कहा कि ऐसे धर्म के होने का कोई मतलब नहीं है जिसमें मनुष्यता का कोई भी मूल्य ना हो। जो अपने ही धर्म के लोगों को धार्मिक शिक्षा प्राप्त नहीं करने देता हो, नौकरी करने में बाधा पहुंचाता हो, बात बात पर अपमानित करता हो, यहां तक कि पानी पीने का अधिकार तक ना देता हो ऐसे धर्म में व्यक्ति के रहने का कोई मतलब नहीं। आम्बेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ने का निश्चय किसी भी तरह की दुश्मनी या हिंदू धर्म के विनाश के लिए नहीं किया था बल्कि उन्होंने यह निश्चित कुछ मौलिक सिद्धांतों को लेकर किया था जिनका हिंदू धर्म में कोई तालमेल नहीं बैठ रहा था। नासिक के निकट येवला में 13 अक्टूबर 1935 को एक सम्मेलन के दौरान आम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की।
“हालांकि मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूँ, लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूँगा!”
उन्होंने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म को छोड़कर कोई और धर्म अपनाने को कहा। उन्होंने अपनी इस बात को भारत की कई सार्वजनिक सभाओं में लोगों को कहा। भीमराव के धर्म परिवर्तन की इस घोषणा के बाद हैदराबाद से इस्लाम धर्म के निजाम और कई ईसाई मिशनरियों ने उन्हें अपने धर्म में आने के लिए करोड़ों रुपए का लालच दिया लेकिन भीमराव ने सभी के प्रलोभनों को ठुकरा दिया। वह हमेशा से यह चाहते थे कि दलित लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हो लेकिन दूसरों के धन पर निर्भर होकर नहीं बल्कि अपने परिश्रम व संगठित होने से स्थिति में सुधार आना चाहिए। भीमराव ऐसे धर्म को अपनाना चाहते थे जिसका केंद्र नैतिकता और मनुष्य हो, उसमें स्वतंत्रता समता और बंधुत्व हो। भीमराव कभी भी ऐसे धर्म में शामिल नहीं होना चाहते थे जो छुआछात व वर्णभेद की मानसिकता का गुलाम हो। वह ऐसे धर्म को भी नहीं अपनाना चाहते थे जिसमें अंधविश्वास और पाखंड बाद भरा हो।
डॉ बी आर आम्बेडकर ने धर्म परिवर्तन की घोषणा करने के बाद 21 सालों तक दुनिया के सभी मुख्य धर्म का अच्छे से अध्ययन किया। अंत में आम्बेडकर जी को बौद्ध धर्म पसंद आया क्योंकि इसमें 3 सिद्धांतों का समावेश मिला जोकि किसी अन्य धर्म में नहीं मिला। बौद्ध धर्म प्रज्ञा (अंधविश्वास तथा अतिप्रकृतिवाद के स्थान पर बुद्धि का प्रयोग), करुणा (प्रेम) और समता (समानता) की शिक्षा देता है। भीमराव का मानना था कि मनुष्य इन्हीं बातों को आनंदित जीवन और शुभ के लिए चाहता है। आत्मा और देवता समाज को नहीं बता सकते। इनके अनुसार सच्चा धर्म वही है जिसका केंद्र मनुष्य और नैतिकता हो, विज्ञान अथवा बौद्धिकता पर आधारित हो नाकी धर्म का केंद्र ईश्वर, आत्मा की मुक्ति और मोक्ष। इसके अलावा उनका कहना था कि धर्म का कार्य विश्व का पुनर्निर्माण करना होना चाहिए ना कि उसकी उत्पत्ति और अंत की व्याख्या करना। भीमराव जनतांत्रिक समाज व्यवस्था के पक्ष में थे, उनका मानना था ऐसी स्थिति में धर्म मानव जीवन का मार्गदर्शक बन सकता है। यह सब बातें उनको केवल और केवल बौद्ध धर्म में मिली।
संविधान निर्माण में डॉ भीमराव आंबेडकर का योगदान
Bhim Rao Ambedkar Biography In Hindi
कांग्रेसमें गांधी भीमराव की काफी आलोचना करते थे लेकिन इसके बावजूद जब 15 अगस्त 1947 को भारत की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस की सरकार बनी तो उसने भीमराव आम्बेडकर को देश का पहला कानून एवं न्याय मंत्री बनाया। स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना करने के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के लिए भीमराव आम्बेडकर को 29 अगस्त 1947 को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। भीमराव ने जो संविधान तैयार किया उसमें व्यक्तिगत नागरिकों के लिए नागरिक स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा प्रदान की गई। इसमें इन्होंने छुआछूत को खत्म करना, धर्म की आजादी और भेदभाव के सभी रूपों का खात्मा करना शामिल था।
आम्बेडकर ने महिलाओं के लिए सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के लिए आवाज उठाई, इसके अलावा अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)के लोगों के लिए स्कूल और कॉलेजों वे नागरिक सेवाओं में नौकरी असम की व्यवस्था शुरू करने के लिए असेंबली का समर्थन जीता। 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा इस संविधान को अपना लिया गया। भीमराव आम्बेडकर ने अपना काम पूरा करने के बाद बोला –
“मैं महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य (काम करने लायक) है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके। वास्तव में, मैं कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।”
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर द्वारा अनुच्छेद 370 का विरोध :
Baba Saheb Ki Jivani Kahani
अनुच्छेद 370 जिसने जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा दिया था इस अनुच्छेद का भीमराव आम्बेडकर ने विरोध किया था। इनके विरोध करने के बावजूद भी इस अनुच्छेद को संविधान में शामिल कर दिया गया। भीमराव ने कश्मीर के नेता शेख अब्दुल्ला को बताया था कि ” आप चाहते हैं कि भारत आप की सीमाओं की रक्षा करें, भारत आपके क्षेत्र की सड़कों का निर्माण करें, भारत आप के अनाज की आपूर्ति करें, और कश्मीर को भारत के समान दर्जा देना चाहिए, लेकिन भारत के पास केवल सीमित शक्तियां होनी चाहिए लेकिन भारतीय लोगों को कश्मीर में कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती काम नहीं करूंगा।
“फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी अयंगार को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था। अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे।
भीमराव आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्ष में थे और कश्मीर की धारा 370 का विरोध किया करते थे। आम्बेडकर की चाहत आधुनिक भारत, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होने की थी। उनके विचारों में पर्सनल कानून की कोई जगह नहीं थी। संविधान सभा में बहस के दौरान भीमराव ने एक समान नागरिक संहिता को लागू करने की बात कही ऐसा करके भारतीय समाज में सुधार लाने की सिफारिश की। सन 1951 में संसद में भीमराव के हिंदू कोड बिल के मसौदे को रोक दिया गया जिससे भीमराव ने मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। इस हिंदू कोड बिल में भारतीय महिलाओं को कई अधिकार देने की बात कही गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गई थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू कैबिनेट और कांग्रेसी कुछ अन्य नेताओं ने इनकी बात को सही माना था लेकिन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद एवं बल्लभ भाई पटेल काफी संसद सदस्य इस मांग के खिलाफ थे।
विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री लेने वाले भीमराव आम्बेडकर पहले भारतीय थे। उन्होंने कहा था कि औद्योगिकीकरण और कृषि विकास से भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी सुधार होगा। भारत में इन्होने कृषि में प्राथमिक उद्योग के रूप में निवेश करने पर कहा। भीमराव के इस विचार ने भारत सरकार को अपने खाद्य सुरक्षा लक्ष्य हासिल करने में सहायता की। इसके अलावा भीमराव ने राष्ट्रीय आर्थिक और सामाजिक विकास की वकालत की। सार्वजनिक स्वच्छता, शिक्षा, समुदाय स्वास्थ्य तथा आवासीय सुविधाओं के बुनियादी सुविधाओं को दिलवाने लिए काफी जोर दिया।
भारतीय रिज़र्व बैंक में भीमराव आम्बेडकर का योगदान :
Baba Saheb Ki Jivani Parichay
सन 1921 तक भीमराव आम्बेडकर 1 पेशेवर अर्थशास्त्री बन चुके थे। इन्होंने अर्थशास्त्र पर 3 महत्वपूर्ण पुस्तके लिखी – 1.अॅडमिनिस्ट्रेशन अँड फायनान्स ऑफ दी इस्ट इंडिया कंपनी
2.द इव्हॅल्युएशन ऑफ प्रॉव्हिन्शियल फायनान्स इन् ब्रिटिश इंडिआ
3.द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी : इट्स ओरिजिन ॲन्ड इट्स सोल्युशन
भारतीय रिजर्व बैंक की रूपरेखा भीमराव के विचारों पर आधारित थी।
भीमराव आम्बेडकर का दूसरा विवाह :
लंबे समय तक बीमार रहने के बाद भीमराव की पहली पत्नी रमाबाई की मृत्यु 1935 में हो गई थी। 1940 के दौरान भीमराव नींद की कमी से बीमार रहने लग गए थे, उनके पैरों में दर्द रहने लग गया इसके लिए वह इंसुलिन और होम्योपैथिक की दवाई लेने लग गए थे। इलाज के लिए वे मुंबई गए और वहां पर डॉक्टरों ने इनको कहा कि आपको एक ऐसे जीवन साथी की जरूरत है जो आपके लिए अच्छा खाना बना सके, आप की देखभाल कर सके और जिनको थोड़ा बहुत चिकित्सा का ज्ञान हो।
हॉस्पिटल में भीमराव की मुलाकात डॉक्टर शारदा कबीर से हुयी और 15 अप्रैल 1948 को उन्होंने शारदा कबीर के साथ शादी कर ली।
शादी के बाद डॉक्टर शारदा कबीर ने अपना नाम सविता आम्बेडकर रख लिया। इनको बाद में उनको ‘माई’ या ‘माइसाहेब’ के नाम से जाना गया। सविता आम्बेडकर ने 29 मई 2003 को दिल्ली के महरौली में अपने प्राण त्याग दिए।
भीमराव आम्बेडकर का बौद्ध धर्म में परिवर्तन :
सन 1950 के दशक में बाबासाहेब बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए। उन्होंने घोषणा की कि वे बौद्ध धर्म पर एक किताब लिख रहे हैं और जैसे ही यह पूरी होगी तो वो औपचारिक रूप से बौद्ध धर्म अपना लेंगे। भीमराव ने ‘भारतीय बौद्ध महासभा’ यानी ‘बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया’ की स्थापना की 1955 में की। 1956 में उन्होंने अपना प्रसिद्ध ग्रंथ, ‘द बुद्ध एंड हिज़ धम्म’ पूरा किया।
यह ग्रंथ उनकी मृत्यु के बाद 1957 में प्रकाशित हुआ। इस ग्रंथ की प्रस्तावना में डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने लिखा-
“मैं बुद्ध के धम्म को सबसे अच्छा मानता हूं। इससे किसी धर्म की तुलना नहीं की जा सकती है। यदि एक आधुनिक व्यक्ति जो विज्ञान को मानता है, उसका धर्म कोई होना चाहिए, तो वह धर्म केवल बौद्ध धर्म ही हो सकता है। सभी धर्मों के घनिष्ठ अध्ययन के पच्चीस वर्षों के बाद यह दृढ़ विश्वास मेरे बीच बढ़ गया है।”
14 अक्टूबर 1956 को भीमराव आम्बेडकर ने नागपुर शहर में अपने समर्थकों के साथ औपचारिक रूप से सार्वजनिक धर्मांतरण समारोह का आयोजन किया। पहले डॉ भीमराव ने अपनी पत्नी सविता एवं अन्य समर्थकों के साथ भिक्षु महास्थवीर चंद्रमणी द्वारा त्रिरत्न और पंचशील ग्रहण करते हुए बौद्ध धर्म अपनाया। इसके बाद उनके 500000 समर्थकों ने त्रिरत्न, पंचशील और 22 प्रतिज्ञाएँ लेते हुए बौद्ध धर्म को अपनाया। भीमराव देवताओं के इस जाल को तोड़कर एक ऐसे इंसान की कल्पना कर रहे थे जो धार्मिक तो हो लेकिन गैर बराबरी को जीवन मूल्य न माने। हिंदू धर्म के बंधनों से पूरी तरह से मुक्त होने के लिए भीमराव ने बौद्ध अनुयायियों के लिए 22 प्रतिज्ञा स्वयं निर्धारित की जो कि बौद्ध धर्म का सार थी। इन 22 प्रतिज्ञा में अवतारवाद के खंडन,श्राद्ध-तर्पण,अविश्वास,पिंडदान के परित्याग,ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह न भाग लेने,बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों में विश्वास,मनुष्य की समानता में विश्वास,प्राणियों के प्रति दयालुता, बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग के अनुसरण,झूठ न बोलने, शराब के सेवन न करने, चोरी न करने, बौद्ध धर्म को अपनाने और असमानता पर आधारित हिंदू धर्म का त्याग करने से संबंधित थीं।
नया धर्म अपनाने के बाद भीमराव और उसके अनुयायियों ने विषमता वादी हिंदू धर्म और उसके दर्शन की घोर निंदा की।
जो 2 से 3 लाख लोग 14 अक्टूबर के समारोह में नहीं पहुंच पाए उन्होंने अगले दिन यानी 15 अक्टूबर को बौद्ध धम्म की दीक्षा ली।
इन 2 दिनों में भीमराव आम्बेडकर ने नागपुर में लगभग 8 लाख लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी इसलिए इस जगह का नाम दीक्षाभूमि प्रसिद्ध हो गया। 16 अक्टूबर को तीसरे भीमराव चंद्रपुर गए। यहां पर भीमराव ने करीब 3 लाख लोगों को बौद्ध धम्म की दीक्षा। इन 3 दिनों में भीमराव आम्बेडकर ने करीब 11लाख से अधिक लोगों को बौद्ध धर्म में परिवर्तित किया।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर का निधन : Dr Bhim Rao Ambedkar Death
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर 1948 से मधुमेह की बीमारी से जूझ रहे थे, 1954 तक वो बहुत बीमार हो गए। अब इनको आंखों से भी कम दिखाई देने लग गया था। सारा दिन राजनीतिक मुद्दों में उलझे रहने के कारण भीमराव का स्वास्थ्य दिन-ब-दिन और भी खराब होता चला गया। 1955 में लगातार काम करने के कारण उनकी तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई। अपनी अंतिम पांडुलिपि भगवान बुद्ध और उनका धम्म को समाप्त करने के 3 दिन बाद 6 दिसंबर 1956 को डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर का निधन उनके घर दिल्ली में हो गया। देहांत के समय इनकी उम्र 64 वर्ष और 7 महीने थी।
विमान के जरिए उनका पार्थिव शरीर दिल्ली से मुंबई उनके घर राजगृह लाया गया।
बीपी बीएफ मुंबई में दादर चौपाटी समुद्र तट पर 7 दिसंबर को बौद्ध शैली के अनुसार डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर का अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान भीमराव के लाखों कार्यकर्ताओं समर्थकों और प्रशंसकों ने भाग लिया। उनके अंतिम संस्कार के समय उनके पार्थिव शरीर को साक्षी मानकर करीब 10 लाख से अधिक लोगों ने भदन्त आनन्द कौसल्यायन द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी।
बाबा साहेब की मृत्यु के बाद उनके परिवार में उनकी पत्नी सविता आम्बेडकर रह गई थी। इनकी मृत्यु 29 मई सन 2003 में 94 वर्ष की आयु में हो गयी थी।
इनके पुत्र यशवंत आम्बेडकर और पौत्र प्रकाश आम्बेडकर अब भारिपा बहुजन महासंघ का नेतृत्व करते है।
भारत सरकार द्वारा मरणोपरांत 1990 में डॉ भीमराव आम्बेडकर को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। आम्बेडकर जयंती पर पूरे भारत में सार्वजनिक अवकाश रखा जाता है।
प्रत्येक वर्ष करीबी 10 लाख से अधिक लोग महापरिनिर्वाण यानी पुण्यतिथि (6 दिसम्बर), जयंती (14 अप्रैल), और धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस (14 अक्टूबर)को चैत्यभूमि (मुंबई), दीक्षाभूमि (नागपूर) तथा भीम जन्मभूमि (महू) में उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इकट्ठे होते हैं।
आम्बेडकर का दलित लोगों के लिए संदेश था – “शिक्षित बनो, संघटित बनो, संघर्ष करो”।
आम्बेडकरवाद : अम्बेडकरवाद क्या है ?
“आम्बेडकरवाद” बाबा भीमराव आम्बेडकर की एक विचारधारा तथा दर्शन है। इस विचारधारा में स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा,विज्ञानवाद, मानवतावाद,बौद्ध धर्म,सत्य, अहिंसा आदि के सिद्धान्त शामिल है। दलितों में सामाजिक सुधार,छुआछूत को नष्ट करना,भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार एवं प्रचार, भारतीय संविधान में निहीत अधिकारों तथा मौलिक हकों की रक्षा करना,एक नैतिक तथा जातिमुक्त समाज की रचना और भारत देश प्रगती यह सभी प्रमुख रूप से आम्बेडकरवाद के सिद्धान्त मे शामिल है।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर की प्रमुख पुस्तकें व अन्य रचनाएँ :
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने 32 किताबें, मोनोग्राफ जिनमें 24 तथा 10 अधूरी किताबे थी, 10 ज्ञापन, साक्ष्य और वक्तव्य, 10 अनुसंधान दस्तावेज, दत्त प्रस्तावना और भविष्यवाणियां अंग्रेजी भाषा की रचनाएं हैं। बाबा साहेब को 11 भाषाओं का ज्ञान था जिनमें मातृभाषा मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, पाली, गुजराती, फारसी, कन्नड़, फ्रेंच और बंगाली भाषाएं थी।
अपने समय के सभी राजनेताओं के दिनों में भीमराव ने सबसे ज्यादा लेखन कार्य किया। सामाजिक तथा राजनीतिक संघर्ष करते हुए उन्होंने बहुत सी किताबें, निबंध, लेख और भाषण में लिखें। उनकी साहित्यिक रचनाओं को उनके प्रमुख सामाजिक दृष्टिकोण के लिए पहचाना जाता है। इन सभी में उनकी दूरदृष्टि और भविष्य की सोच मिलती है। भीमराव की रचनाएं भारत सहित पुरे विश्व में पढ़े जाते हैं। भगवान बुद्ध और उनका धम्म ‘भारतीय बौद्धों का धर्मग्रंथ’माना जाता है। उनके डि.एस.सी. प्रबंध द प्रॉब्लम ऑफ द रूपी : इट्स ओरिजिन ॲन्ड इट्स सोल्युशन से भारत के केन्द्रिय बैंक यानी भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना हुई है।
15 मार्च 1976 को महाराष्ट्र सरकार ने डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर मटेरियल पब्लिकेशन कमिटी कि स्थापना की। महाराष्ट्र शिक्षा विभाग का मुख्य उद्देश्य बाबासाहेब के संपूर्ण साहित्य को कई खंडों में प्रकाशित करना है। ‘डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर: राइटिंग्स एण्ड स्पीचेज’ नाम 2019 तक 22 खण्ड अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित हो चुके हैं। इस योजना के तहत पहला खंड डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर के जन्मदिवस 14 अप्रैल 1979 को प्रकाशित हुआ था। इस योजना के जरिए अभी तक 29 किताबें प्रकाशित हो चुकी है। 1987 से इन सभी का मराठी भाषा में अनुवाद करने का काम शुरू हो चुका था लेकिन अभी तक यह काम पूरा नहीं हुआ है।‘डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर: राइटिंग्स एण्ड स्पीचेस’ लोकप्रियता एवं महत्व को देखकर भारत सरकार 21 खंडों को हिंदी में रूपांतरित कर प्रकाशित कर चुकी है। 10 अंग्रेजी खंडों का अनुवाद 21 हिंदी खंडों में किया गया है। डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर का पूरा साहित्य अभी तक प्रकाशित नहीं किया गया है, उनके साहित्य के अप्रकाशित करीब 45 से अधिक खंड बन सकते हैं।
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर और पत्रकारिता :
Baba Saheb Ki Jivani Hindi Mai
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर एक अच्छे पत्रकार एवं संपादक भी थे। उनका विश्वास था कि अखबारों के जरिए समाज में उन्नति होगी। अखबारों को वह आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण मानते थे। दलित समाज में उन्नति और जागृति लाने के लिए उन्होंने कई पत्र एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं संपादन किया। इन सभी से उनको दलित आंदोलन को आगे ले जाने में बहुत सहायता मिली। उन्होंने कहा कि “किसी भी आन्दोलन को सफल बनाने के लिए अखबार की आवश्यकता होती हैं, अगर आन्दोलन का कोई अखबार नहीं है तो उस आन्दोलन की हालत पंख तुटे हुए पंछी की तरह होती हैं।”
दलित पत्रकारिता का आधार भीमराव को माना जाता है क्योंकि यह दलित पत्रकारिता के पहले संपादक प्रकाशक और संस्थापक थे। डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने सभी पत्र मराठी भाषा में ही प्रकाशित किए क्योंकि उनका मुख्य कार्यक्षेत्र महाराष्ट्र था और वहां की सामान्य भाषा मराठी थी। महाराष्ट्र की दलित और शोषित जनता उस समय अधिक पढ़ी-लिखी नहीं थी वहां की जनता ज्यादातर केवल मराठी की समझ पाती थी।
काफी सालों तक उन्होंने 5 मराठी पत्रिकाओं का संपादन किया जिनमें मूकनायक (1920), बहिष्कृत भारत (1927),समता (1928) ,जनता (1930) एवं प्रबुद्ध भारत (1956) शामिल है। इन 500 पत्रिकाओं में डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने देश की राजनीतिक सामाजिक एवं आर्थिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए थे। 1987 में भारत में पहली बार साहित्यकार व विचारक गंगाधर पानतावणे ने आम्बेडकर की पत्रकारिता पर पीएचडी शोध पत्र लिखा। उसमें पानतावने ने आंबेडकर के बारे में लिखा हैं की, “इस मुकनायक ने बहिष्कृत भारत के लोगों को प्रबुद्ध भारत में लाया। बाबासाहब एक महान पत्रकार थे।”
बाबासाहेब आंबेडकर का पाक्षिक पत्र मूकनायक :
भीमराव ने दलितों पर होने वाले अत्याचारों को देखते हुए 31 जनवरी 1920 को अपना पहला मराठी पाक्षिक पत्र मूकनायक शुरू किया। इसके संपादक पांडू राम नंदराम भटकर और भीमराव आम्बेडकर थे। इस पत्थर की सिर्फ भाग ऊपर संत तुकाराम के वचन थे। इस पत्र के लिए कोल्हापुर संस्थान के छत्रपति शाहु महाराज ने 25 हजार की सहायता भी दी।
मूकनायक पत्र दलितों पर होने वाले अत्याचारों की पीड़ा बयां करता था। इस पत्र के द्वारा दलितों में एक नई चेतना का संचार हुआ और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए उकसाया। भीमराव को अपनी पढ़ाई के लिए दूसरे देश में जाना पड़ा और आर्थिक अभाव के कारण यह पत्र 1923 को बंद हो गया।
भीमराव आम्बेडकर की पत्रिका बहिष्कृत भारत :
1923 में लोकनायक पत्र बंद हो जाने के बाद भीमराव ने 3 अप्रैल 1924 को अपना दूसरा मराठी पाक्षिक पत्र बहिष्कृत भारत निकाला। इस पत्र का संपादन खुद भीमराव आम्बेडकर ने किया। इस पत्र के जरिए वह दलित समाज की समस्याओं और शिकायतों को सभी के सामने लाने का प्रयास करते थे। एक बार संपादकीय में उन्होंने लिखा कि यदि बालक गंगाधर तिलक अछूतों के बीच पैदा होते तो वह यह नारा कभी नहीं लगाते की “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है” इसके बजाय वह कहते की “छुआछूत का उन्मूलन मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है।” दलित लोगों को जागृत करने में इस पत्र ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।इस अखबार के शीर्ष भागों पर संत ज्ञानेश्वर के वचन थे। इस मराठी पत्र के कुल 34 अंक निकले लेकिन आर्थिक कठिनाइयों की वजह से नवंबर 1929 को यह भी बंद हो गया।
भीमराव आम्बेडकर का हिंदी पत्र समता :
भीमराव ने हिंदी पत्र समता की शुरुआत 29 जून 1928 को की थी। यह पत्र भीमराव आम्बेडकर द्वारा संचालित संस्था समाज समता संघ (समता सैनिक दल) का मुखपत्र था। भीमराव आम्बेडकर ने विष्णु नायक को इस पत्र का संपादक बनाया।
भीमराव आम्बेडकर की पत्रिका जनता :
कुछ कारणों से समता पत्र बंद हो गया इसके बाद भीमराव ने इस पत्र को दोबारा जनता नाम से प्रकाशित किया। जनता पत्र का पहला पाक्षिक अंक 24 फरवरी 1930 को निकला। 31 अक्टूबर 1930 को यह पत्थर साप्ताहिक बन गया। भीमराव ने इसमें “आम्ही शासनकर्ती जमात बनणार” (हिंदी: हम शासक कौम बनेंगे) नामक एक प्रसिद्ध लेख लिखा। पत्थर लोगों की समस्याओं को उठाने में इस पत्र ने बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया। सन 1956 को यह पत्र बंद हो गया। यह पत्र कुल 26 वर्षों तक चला।
भीमराव आम्बेडकर की पत्रिका प्रबुद्ध भारत :
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने 4 फरवरी 1956 को प्रबुद्ध भारत पत्र की शुरुआत की। यह जनता पत्र ही था जिसका नाम बदलकर भीमराव ने प्रबुद्ध भारत कर दिया था। इस पत्र के मुखशीर्ष पर ‘अखिल भारतीय दलित फेडरेशन का मुखपत्र’ प्रकाशित होता था। भीमराव के निधन के बाद यह पत्र बंद हो गया। भीमराव के पौत्र प्रकाश आम्बेडकर ने 11 अप्रैल 1917 को महात्मा फुले की जयंती के उपलक्ष में प्रबुद्ध भारत को फिर से शुरू करने की घोषणा की। प्रबुद्ध भारत का पहला अंक फिर से 10 मई 2017 को पाक्षिक रूप में शुरू हुआ।
उपरोक्त सभी पत्र-पत्रिकाओं दम डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने दलितों के उत्थान में बहुत योगदान दिया जिससे अछूतों के जीवन व सोच में काफी बदलाव आया।
बाबा साहेब डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर की विरासत :
Baba Saheb Ki Jivan Katha
बाबासाहेब सबसे पहले भीमराव के समर्थकों द्वारा अक्टूबर 1927 को आदर व सम्मान के साथ बाबासाहेब कहां गया। बाबासाहेब एक मराठी शब्द है जिसका अर्थ पिता साहब होता है। उनके अनुयाई बाबा साहेब को अपना महान मुक्तिदाता मांगते थे इसलिए इन्होंने भीमराव को बाबासाहेब कह के पुकारा।
आज बहुत से विश्वविद्यालयों और सार्वजनिक संस्थानों के नाम बाबासाहेब के नाम पर रखे गए हैं। इनमें डॉ॰ बी॰आर॰ आम्बेडकर राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (जालंधर), डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर अंतर्राष्ट्रीय विमानक्षेत्र, आम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली प्रमुख है। इनके नाम पर बहुत से पुरस्कार दिए जाते हैं।
सन 2004 में अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय अपने 200 वर्ष पूरे होने पर इस दिवस को प्रमुख रूप से मनाने का निश्चय किया। इस विश्वविद्यालय ने अपने यहां से पढ़ चुके सिर्फ के 100 बुद्धिमान विद्यार्थियों की कोलंबियन अहेड्स ऑफ देअर टाइम नामक सूची बनाई। जब यह सूची बनकर सबके सामने आई तो इसमें सबसे पहला नाम भीमराव आम्बेडकर कथा तथा उनका ज़िक्र “आधुनिक भारत का निर्माता” के रूप में किया गया। कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा आम्बेडकर को सबसे अधिक बुद्धिमान विद्यार्थी कहा गया।
हिस्ट्री tv18 और सीएनएन आईबीएन द्वारा 2012 में किए गए चुनाव सर्वेक्षण के दौरान भीमराव आम्बेडकर को “द ग्रेटेस्ट इंडियन” (महानतम भारतीय) के रूप में सबसे अधिक वोट मिले।
अर्थशास्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका के कारण भारतीय अर्थशास्त्री नरेंद्र जाधव ने कहाँ की ,“आम्बेडकर सभी समय के उच्चतम शिक्षित भारतीय अर्थशास्त्री थे।” अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर चुके अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा कि , “आम्बेडकर अर्थशास्त्र विषय में मेरे पिता हैं। वे अछूतों और शोषितों के सच्चे महानायक है। उन्हें आज तक जो भी मांग उससे कहीं ज्यादा के पात्र हैं। भारत में वह बहुत अधिक विवादित व्यक्ति रहे हैं। हालांकि उनके व्यक्तित्व और जीवन में विवाद करने योग्य कुछ भी नहीं। जो भी उनकी आलोचना में कहा जाता है वह वास्तविकता से एकदम अलग है। अर्थशास्त्र के क्षेत्र में उनका योगदान बहुत शानदार रहा है।”
अध्यात्मिक गुरु ओशो ने कहा कि “मैंने उन लोगों को देखा है जो हिंदू कानून की सबसे निचली श्रेणी शूद्र, अछूतों में पैदा हुए हैं, किंतु वे बहुत बुद्धिमान हैं: जब भारत स्वतंत्र हो गया, और जिसने भारत के संविधान का निर्माण किया, वह डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर एक व्यक्ति शूद्र थे। कानून के मुताबिक उनकी बुद्धि के बराबर कोई नहीं था – वह एक विश्व प्रसिद्ध प्राधिकरण थे।”
2010 में भारतीय संसद को संबोधित करते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर को महान और सम्मानित मानवाधिकार चैंपियन व भारत के संविधान के मुख्य लेखक के रूप में संबोधित किया।
इतिहासविद रामचंद्र गुहा उन्हें “ग़रीबों का मसीहा” बताया।
आम्बेडकर के राजनीतिक दर्शन ने भारत में बड़े पैमाने पर राजनीतिक दलों श्रमिक संघों को जन्म दिया। बौद्ध धर्म अपनाने से भारत के लोगों के बीच बौद्ध धर्म में रुचि बढ़ गई। आज के समय में भी बड़े पैमाने पर समारोह आयोजित कर बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो रहे हैं।
भारत के बाहर की अगर बात करें तो 1990 के दौरान कुछ हंगेरियन रोमानी लोगों ने भारत के दलितों वह अपनों के बीच कुछ समानताएं देखी। डॉ. बी. आर. आम्बेडकर से प्रेरित होकर वहां के लोगों ने बौद्ध धर्म में परिवर्तित होना शुरू कर दिया। वहां के लोगों ने हंगरी में “डॉ॰ आम्बेडकर हायस्कूल’ नाम से 3 स्कूल भी शुरू की है। 6 दिसंबर 2016 को हंगरी के जय भीम नेटवर्क द्वारा एक स्कूल में आम्बेडकर का स्टेचू भी स्थापित किया गया।
महाराष्ट्र के नागपुर जिले में चिचोली गांव में डॉ आंबेडकर वस्तु संग्रहालय बनाया गया है। इसके अलावा शांतिवन में आम्बेडकर की निजी वस्तुएं भी रखी हुई है।
डॉ. बी. आर. आम्बेडकर दलित समुदाय के सबसे पूजनीय नेता रहे हैं। बाबा साहेब की मूर्ति और स्टेचू भारत के हरगांव, शहर, रेलवे स्टेशन, चौराहे व पार्को में देखने को मिल जाएगी। इनकी फोटो पश्चिमी सूट, टाई के साथ, सामने वाली जेब में एक कलम और बाहों में भारतीय संविधान की किताब तथा चश्मा लगाए हुए देखने को मिलेगी। जापान, ग्रेट ब्रिटेन सहित दुनिया के अनेकों देशों में इन की मूर्तियां देखने को मिलेगी।
डॉ बी आर आम्बेडकर लोकप्रिय संस्कृति में
Dr Bhim Rao Ambedkar Biography In Hindi Language
प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को बाबा साहेब का जन्म दिवस यानी आम्बेडकर जयंती मनाई जाती है। महाराष्ट्र के लोगों के लिए बहुत बड़ा त्यौहार है। महाराष्ट्र सरकार आम्बेडकर जयंती को ज्ञान दिवस के रूप में मनाती हैं क्योंकि डॉ आंबेडकर को ज्ञान का प्रतीक ही नहीं सिंबल ऑफ नॉलेज भी माना जाता है। इस दिन पूरे भारत में सार्वजनिक अवकाश होता है। हर साल इस दिन नई दिल्ली संसद में भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्वारा इन को श्रद्धांजलि दी जाती है। दलित बौद्ध एवं आम्बेडकरवादी लोग अपने अपने घरों में उनकी तस्वीर को रख के भगवान की तरह इनका अभिनंदन करते हैं।
भारत के अलावा दुनिया के 65 से अधिक देशों में आम्बेडकर जयंती मनाई जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आम्बेडकर की 125वीं जयंती का आयोजन किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाबा साहेब को ‘विश्व का प्रणेता’ कहा। आम्बेडकर जयंती की शुरुआत उनके अनुयाई रणदी से आम्बेडकर ने की थी।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा 7 नवंबर को विद्यार्थी दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन भीमराव आम्बेडकर ने स्कूल प्रवेश किया था। बहुत बड़े विद्वान होने के बावजूद भी भीमराव पूरी जिंदगी एक विद्यार्थी बन कर ही रहे। इस दिन स्कूल कॉलेजों में आम्बेडकर के जीवन पर निबंध, व्याख्यान, क्विज कंपटीशन, प्रतियोगिताएं, व कविता पाठ सहित अनेकों कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
जय भीम आम्बेडकरवादी लोगों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला एक अभिवादन है, जिसका अर्थ भीमराव आम्बेडकर की जीत हो या फिर भीमराव आम्बेडकर जिंदाबाद है। भीमराव के अनुयाई बाबू हरदास द्वारा यह वाक्यांश गढ़ा गया।
भीमराव का प्रतीक नीला रंग है। यह रंग भीम राव को बहुत प्यारा था क्योंकि यह समानता का प्रतीक है। बाबा साहेब की तस्वीर हमेशा नीले रंग कि कोट में पाई जाती है। 1942 में भीमराव ने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन ऑफ इंडिया पार्टी की स्थापना की थी इस पार्टी के झंडे का रंग भी मिला था और उसके बीच में अशोक चक्कर था।
भीमराव ने झंडे का यह नीला रंग महाराष्ट्र के दलित वर्ग महार के झंडे से लिया है। बौद्ध धर्म का अशोक चक्र वाला यह नीला झंडा आम्बेडकरबाद का प्रतीक बन चुका है। इसके अलावा भारिप बहुजन महासंघ, बहुजन समाज पार्टी सहित अन्य आम्बेडकरवादी संगठनों ने भी इसी रंग को अपनाया है। बौद्ध एवं दलित प्रत्येक अवसर पर नीले रंग तथा नीले झंडे का प्रयोग करते हैं।
भीमायन: एक्यपेरियन्स ऑफ अनचलेब्लिटी (भीमायन: छुआछूत का अनुभव) यह भीमराव आम्बेडकर की एक ग्राफिक जीवनी है। इसको पारदन-गोंड कलाकार दुर्गाबाई व्याम, सुभाष व्याम,श्रीविद नटराजन और एस आनंद द्वारा बनाई गई है। इस रचना में भीमराव के बचपन से लेकर बड़े होने तक छुआछूत की सभी अनुभवों को दिखाया गया है।
1920 में लंदन में भीमराव जिस मकान में रह कर शिक्षा ग्रहण कर रहे थे उस घर को अब “अंतर्राष्ट्रीय आम्बेडकर मेमोरियल” मे तब्दील कर दिया गया है। इसका लोकार्पण भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 14 नवम्बर 2015 को किया गया।
लखनऊ में आम्बेडकर उद्यान पार्क उनकी याद में बनाया गया है। चैत्य में उनकी जीवनी को प्रदर्शित करती हुई यह स्मारक है।
भारतीय डाक द्वारा 1966, 1973, 1991, 2001 और 2013 में उनके जन्मदिन पर डाक टिकट जारी किए गए।
गूगल ने 14 अप्रैल 2015 को अपनी होम पेज पर डूडल के जरिए डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर की जयंती मनाई। यह डूडल भारत सहित अर्जेंटीना, चिली, आयरलैंड, पेरू, पोलैंड, स्वीडन और यूनाइटेड किंगडम देशों में भी देखने को मिला।
डॉक्टर बी आर आम्बेडकर की 125 वी जयंती के उपलक्ष में भारत सरकार द्वारा 10 और 125 रूपये के सिक्के जारी किए गए।
डॉक्टर बी आर आम्बेडकर पर बनी फिल्में और नाटक :
डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर की सोच और जीवनी को दिखाती हुई फिल्म और नाटकों का निर्माण किया गया है। डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर का निर्देशन जब्बार पटेल द्वारा साल 2000 में किया गया। इस फिल्म का निर्माण सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय व राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम द्वारा किया गया। विवादों के कारण इस फिल्म के प्रदर्शित होने में काफी समय लग गया। आम्बेडकर के जीवन के बारे में रूची और ज्ञान को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रोफेसर डेविड ब्लंडेल ने फिल्मों और कार्यक्रमों की एक श्रृंखला – एरीजिंग लाइट की स्थापना की। श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित एक मिनी टीवी सीरीज संविधान में आम्बेडकर की मुख्य भूमिका बनाई गई।
एबीपी मांझा टीवी द्वारा सन 2016 में भीमराव आम्बेडकर की 125 वीं जयंती के अवसर पर एक मराठी श्रंखला सर्वव्यापी आंबेडकर शुरू की गई। स्टीव श्रंखला में आम्बेडकर की 11 अलग-अलग भूमिका दिखाई गई है -शिक्षाविद, अर्थशास्त्री, संपादक, श्रमिक नेता,सत्याग्रही (महाड सत्याग्रह, कालाराम मंदिर सत्याग्रह),सियासती नेता (पूना पैक्ट, हिन्दू कोड बिल) बैरीस्टर, पुस्तकप्रेमी, लेखक, संविधान निर्माता और बुद्ध अनुयायी।
भीमराव आम्बेडकर के जीवन और विचारों पर काफी फिल्में बनाई गई है। भीमराव आम्बेडकर की कुछ महत्वपूर्ण फिल्में यहां पर है –
- युगपुरुष डॉ॰ बाबासाहेब आम्बेडकर – मराठी फिल्म (१९९३)
- डॉ। बाबासाहेब आम्बेडकर – सन २००० की अँग्रेजी फिल्म
- भीम गर्जना – मराठी फिल्म (१९९०)
- बालक आम्बेडकर – कन्नड फिल्म (१९९१)
- डॉ. बी.आर. आम्बेडकर – कन्नड फिल्म (२००५)
- रायजिंग लाइट – 2006 में बनी डॉक्युमेंट्री फिल्म
- अ जर्नी ऑफ सम्यक बुद्ध – हिंदी फिल्म (२०१३), जो आम्बेडकर के भगवान बुद्ध और उनका धम्म ग्रन्थ पर आधारित है।
- रमाबाई – कन्नड फिल्म (२०१६)
- डॉ. बी.आर. आम्बेडकर – कन्नड फिल्म (२००५)
- रायजिंग लाइट – 2006 में बनी डॉक्युमेंट्री फिल्म
- बोले इंडिया जय भीम – मराठी फिल्म, हिंदी में डब (२०१६)
- बाल भिमराव – २०१८ की मराठी फिल्म
- अ जर्नी ऑफ सम्यक बुद्ध – हिंदी फिल्म (२०१३), जो आम्बेडकर के भगवान बुद्ध और उनका धम्म ग्रन्थ पर आधारित है
- रमाबाई – कन्नड फिल्म (२०१६)
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